یک پنجره برای من کافیست |
|
|
|
|
شاید امروز چو بگذشت نباشم فردا |
|
|
|
|
برادری سخنی بیش نیست |
|
|
|
|
دردهای من نهفتنی است |
|
|
|
|
می آیم از قبیله لیلی |
|
|
|
|
کلاغ خانه ی کوچک ما رنگی سیاه داشت |
|
|
|
|
تنها انسان تنهایی بزرگست |
|
|
|
|
چه امید عبثی بستم من به مترسک |
|
|
|
|
پی خویش خویش رفته و با خویش آمده |
|
|
|
|
گاهی گمان نمکنی ولی می شود گاهی نمی شود که نمی شود که نمی شود |
|
|
|
|
قربونت برم خدا چقدر غریبی رو زمین |
|
|
|
|
نه خیابان به بیابان نیست |
|
|
|
|
پشت سر روی همه ی فرفره ها خاک نشسته است |
|
|
|
|
و تار از پود و پود از تار آن رفته |
|
|
|
|
اتاق من خاموش و کاغذیست |
|
|
|
|
می خواند و باز می خواند |
|
|
|
|
دخیل های آرزو رنگارنگ |
|
|
|
|
عکس گنجشک افتاد در آب های رفاقت |
|
|
|
|
کسی به فکر رهایی نیست |
|
|
|
|
من از نهایت شب حرف می زنم |
|
|
|
|
شهر خوابیده است |
|
|
|
|
تنها در بی چراغی شب ها می رفتم |
|
|
|
|
کجاست جشن خطوط |
|
|
|
|
جنگل شوق رنده را پرواز داد |
|
|
|
|
آسمان پر شد از خال پروانه های تماشا |
|
|
|
|
وتو گرانی و در بارانها می گذری |
|
|
|
|
کجاست آبی ی خالص |
|
|
|
|